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रमेशचन्द भोजवानी


कार्यवाहक प्राचार्य


रा.शा.सं.महा.जालिया द्वितीय

 

संस्कृत - अध्यात्म व तकनीक का अदभुत मिश्रण

तकनीकी शिक्षा के इस दौर में प्रत्येक विद्यार्थी मात्र ऐसी तकनीकी शिक्षा को ग्रहण करने की ओर अग्रसर है जिससे उसे शीघ्रातिशीघ्र रोजगार की प्राप्ति हो | तकनीकी शिक्षा को प्राप्त करने की इस दौड़ में हम अपने मूलतत्व अध्यात्म व् भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे है | इसी अध्यात्म व संस्कृति के बल पर भारतवर्ष निर्विवाद रूप से समस्त विश्व में ज्ञान गुरु रहा है किन्तु पाश्चात्यीकरण और रोजगार की अन्धाधुन्ध दौड़ ने हमें मात्र एक ऐसा चलता फिरता रॉबोट बना दिया है जिसमें भावनाओं और संवेदनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है | हम यह भूल रहे है कि अत्यधिक आधुनिकीकरण ही कई सभ्यताओं के पतन का कारण बना है| आज जब सारा संसार अध्यात्म व भारतीय संस्कृति की और उन्मुख है तो फिर हम कैसे जीवन के इस मूलतत्व की उपेक्षा कर सकते है |

किन्तु आधुनिकीकरण के इस दौर में तकनीकी शिक्षा की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती अतः आवश्यकता है एक ऐसी शिक्षा की जिसमें अध्यात्म, तकनीक व व्यवसाय का अदभुत संगम हो| संस्कृत शिक्षा ही एक मात्र ऐसा विकल्प है जिससे हम न केवल अपनी संस्कृति से जुड़े रह सकते है अपितु शीघ्रातिशीघ्र रोजगार भी कर सकते है| ज्योतिष, वेदान्त, कर्मकाण्ड संस्कृत के ऐसे तकनीकी पक्ष है जिनका लोहा आज अमेरिका भी मानता है | इतना ही नहीं संस्कृत शिक्षा प्राप्त करने वाला व्यक्ति न केवल शीघ्र रोजगार प्राप्त कर सकता है अपितु अध्यात्म से जुड़ा रह कर एक आदर्श भारतीय नागरिक भी बन सकता है |

गुरुकुल पर आधारित मनोरम प्राकृतिक वातावरण में स्थित यह महाविद्यालय ऐसी ही रोजगारोन्मुखी संस्कृत शिक्षा के अध्ययन पर बल देता है | मै इस महाविद्यालय में आप सभी का स्वागत करते हुए योग्य शिक्षार्थियों को अध्ययन हेतु सहर्ष आमंत्रित करता हूँ | मुझे विश्वास है की आप अवश्य संस्कृत शिक्षा को आत्मसात कर स्वयं को भारत की आत्मा से जोड़े रखेंगे |

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