![]() कैलाशचन्द्रशर्मा अध्यक्ष महाविद्यालय विकास समिति |
देववाणी संस्कृत सभी भाषाओँ का मूल स्रोत ऋग्वेद से लेकर आज तक तथा हिमालय से कन्या कुमारी तक संस्कृत का अध्ययन अध्यापन आज तक होता रहा है | साहित्यिक दृष्टि से भी यह भाषा अतिसम्पन्न रही है | विश्व की समस्त प्राचीन भाषाओँ में संस्कृत का सर्वप्रथम और उच्च स्थान है | विश्व साहित्य की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद भी इसी भाषा का ही देदीप्यमान रत्न है | भारतीय संस्कृति का रहस्य इसी भाषा में निहीत है | इस भाषा का अध्ययन किये बिना भारतीय संस्कृति का पूर्णज्ञान असंभव है | आज भी भारत की समस्त भाषाएँ इसी वात्सल्यमयी जननी के स्तान्यामृत से पुष्टि पा रही हैं | पाश्चात्य विद्वान भी इस भाषा के महत्व को करबद्ध होकर स्वीकार करते हैं | ऐसी महानतम भाषा का अध्ययन अध्यापन करवाना अपने आप में गौरव का विषय है | महाविद्यालय विकास समिति विगत 12 वर्षो से इसी पुनीत कार्य को करने का हर संभव प्रयास कर रही है |विकास समिति का ध्येय देववाणी संस्कृत भाषा का संवर्धन व् विकास है | मुझे पूर्ण आशा है की भविष्य में भी हमारा महाविद्यालय विकास के नवीन शिखरों को छूता हुआ ग्रामीण विद्यार्थियों को इस भाषा का सांगोपांग अध्ययन करवाने का प्रयास करता रहेगा | |