शैक्षणिक नगरी जालिया द्वितीय एक परिचय
ब्यावर बिजयनगर रोड से एक किलोमीटर दूर दक्षिण में खारी नदी के सुरम्य तट पर स्थित जालिया द्वितीय शैक्षणिक नगरी के रूप में जाना जाता है | शैक्षणिक नगरी जालिया द्वितीय लगभग 700 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था | यह गाँव बिजयनगर से 10 किलोमीटर दूर ब्यावर मार्ग पर स्थित है | व्यापारिक मंडी के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव कपास गेंहू, मक्का, और मैथी की फसलों के लिए जाना जाता है | गुलाब की खेती होने के कारण यहाँ का गुलाब जल, गुलकन्द तथा इत्र प्रसिद्ध है और दुग्ध उत्पादन में भी इस गाँव का विशेष स्थान है |
ब्रिटिश काल से ही शिक्षा की दृष्टि से जालिया द्वितीय विख्यात रहा है | सन1912 में अंग्रेजो ने वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल को देवलियां से यहाँ स्थानांतरित कर दिया जो इलाहाबाद शिक्षा बोर्ड से संबद्ध था | सन 1960 में यहाँ पर कलासंकाय के साथ उच्च माध्यमिक विद्यालय विकसित हुआ | सन 1965 में विज्ञान संकाय तथा 1980 में कृषि संकाय भी प्रारम्भ किये गये | शिक्षा की दृष्टि से यह गाँव अपने समकक्ष अन्य गाँवों की तुलना में पर्याप्त विकसित है | यहाँ दूरदराज के छात्र छात्राएं विद्योपार्जन के लिए आते रहते है | वर्तमान में गाँव में माध्यमिक शिक्षा व् संस्कृत शिक्षा की उच्च शिक्षण संस्थाएं संचालित है| इन संस्थाओं में लगभग 1500 विद्यार्थी अध्ययनरत है| राजकीय आदर्श वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय, राजकीय आदर्श बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय तथा राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय के अतिरिक्त राजकीय शास्त्री संस्कृत महाविद्यालय भी सफलता पूर्वक संचालित हैं |
महाविद्यालय स्थापना
निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल |
बिन निज भाषा ज्ञान के , मिटे न हिय को शूल ||
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की यह उक्ति मानो तात्कालिक अध्यक्ष भारत विकास परिषद् शाखा जालिया द्वितीय स्व. श्री बालमुकुन्द जी शर्मा जो कि प्रसिद्ध शिक्षाविद भी थे, के ह्रदय में गहरी पैठ कर गई | संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार, संवर्धन के लिए उनका ह्रदय व्याकुल हो उठा, तत्पश्चात ग्रामीण छात्रों के उच्च अध्ययन की परिकल्पना को स्थानीय स्तर पर साकार करने के लिये उन्होंने स्व. श्री बालकिशन जी शर्मा व् अन्य विद्वतजनों के साथ मिलकर संस्कृत महाविद्यालय खोलने का बीड़ा उठाया | उनकी कल्पना को तब साकार रूप मिला, जब 2001 में डा. श्री निरंजन जी साहू जी का वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय जालिया द्वितीय में प्राचार्य के रूप में पदार्पण हुआ | श्री साहू जी के सौम्य व् उदार व्यवहार के फलस्वरूप विद्यालय की प्रगति में चार चाँद लग गए | श्री साहू जी ने अपने मन में देव वाणी संस्कृत के महाविद्यालय के स्वप्न को संजो रखा था | सत्र 2003 में श्री साहू जी के मार्गदर्शन में श्री बालमुकुन्द जी शर्मा व् बालकिशन जी शर्मा ने गाँव के प्रमुख शिक्षाविदों श्री टीकम चन्द जी कोठारी, श्री सोहन लाल जी शर्मा, श्री रामनिवास जी शर्मा, श्री बाबूलाल जी तगाया, श्री रामदेव जी कायत, श्री गजानंद जी कलावत, आदि के साथ मिलकर सकारात्मक प्रयत्न प्रारम्भ किये | जून 2003 में स्ववित्त पोषित योजनान्तर्गत राज्य सरकार से वरिष्ठ उपाध्याय को क्रमोन्नत करके महाविद्यालय संचालन के आदेश प्राप्त किये | तात्कालिक परिस्थितियों के कारण महाविद्यालय को राज्य सरकार से वित्तीय आदेश प्राप्त नहीं हुए | जिसके फलस्वरूप इसे दानदाताओं के सहयोग से चलाने का निर्णय लिया गया | जुलाई 2003 से इस महाविद्यालय का विधिवत शुभारम्भ हो गया | तथा प्रथम वर्ष में ३० छात्र - छात्राओं ने प्रवेश लिया | श्रीमान निदेशक महोदय संस्कृत शिक्षा, जयपुर ने डा. निरंजन साहू को अतिरिक्त समय में निशुल्क सेवाएं देने की शर्त पर महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर सुशोभित होने के आदेश प्रसारित किये |